वांछित मन्त्र चुनें

नमः॒ पार्या॑य चावा॒र्या᳖य च॒ नमः॑ प्र॒तर॑णाय चो॒त्तर॑णाय च॒ नम॒स्तीर्थ्या॑य च॒ कूल्या॑य च॒ नमः॒ शष्प्या॑य च॒ फेन्या॑य च ॥४२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। पार्या॑य। च॒। अ॒वा॒र्या᳖य। च॒। नमः॑। प्र॒तर॑णा॒येति॑ प्र॒ऽतर॑णाय। च॒। उ॒त्तर॑णा॒येत्यु॒त्ऽतर॑णाय। च॒। नमः॑। तीर्थ्या॑य। च॒। कूल्या॑य। च॒। नमः॑। शष्प्या॑य। च॒। फेन्या॑य। च॒ ॥४२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:42


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (पार्याय) दुःखों से पार हुए (च) और (अवार्याय) इधर के भाग में हुए का (च) भी (नमः) सत्कार (च) तथा (प्रतरणाय) उस तट से नौकादि द्वारा इस पार पहुँचे वा पहुँचाने (च) और (उत्तरणाय) इस पार से उस पार पहुँचने वा पहुँचानेवाले का (नमः) सत्कार करें (तीर्थ्याय) वेदविद्या के पढ़ानेवालों और सत्यभाषणादि कामों में प्रवीण (च) और (कूल्याय) समुद्र तथा नदी आदि के तटों पर रहनेवाले को (च) भी (नमः) अन्न देवें (शष्प्याय) तृण आदि कार्यों में साधु (च) और (फेन्याय) फेन बुद्बुदादि के कार्यों में प्रवीण पुरुष को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें, वे कल्याण को प्राप्त होवें ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि नौकादि यानों में शिक्षित मल्लाह आदि को रख समुद्रादि के इस पार, उस पार जा-आके देश-देशान्तर और द्वीपद्वीपान्तरों में व्यवहार से धन की उन्नति करके अपना अभीष्ट सिद्ध करें ॥४२ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नमः) अवारे सत्करणम् (पार्याय) दुःखेभ्यः पारे वर्त्तमानाय (च) (अवार्याय) अवारे अर्वाचीने भागे भवाय (च) (नमः) सत्करणम् (प्रतरणाय) नौकादिना परतटादर्वाचीने तटे प्राप्ताय प्रापयित्रे वा (च) (उत्तरणाय) अर्वाचीनतटात् परतटं प्राप्नुवते प्रापयते वा (च) (नमः) अन्नम् (तीर्थ्याय) तीर्थेषु वेदविद्याध्यापकेषु सत्यभाषणादिषु च साधवे (च) (कूल्याय) कूलेषु समुद्रनद्यादितटेषु साधवे (च) (नमः) अन्नादिदानम् (शष्प्याय) शष्पेषु तृणादिषु साधवे (च) (फेन्याय) फेनेषु बुद्बुदाकारेषु साधवे (च) ॥४२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्याः पार्य्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च नमः कुर्वन्तु प्रदद्युश्च ते सुखं प्राप्नुयुः ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यानेषु नौकादिषु सुशिक्षितान् कैवर्त्तकादीन् संस्थाप्य समुद्रादिपारावारौ गत्वागत्य देशदेशान्तरद्वीपद्वीपान्तरव्यवहारेण धनं निष्पाद्याभीष्टं साधनीयम् ॥४२ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी नौका इत्यादी यानांमध्ये प्रशिक्षित नावाड्यांना ठेवावे. समुद्रात इकडून तिकडे देशदेशांतरी व द्वीपद्वीपांतरी जावे, यावे आणि धन प्राप्त करून आपले ईप्सित साध्य करावे.